Thursday, January 27, 2022

 एक अजूबा


एक अजूबा लोकतन्त्र का,

एक अजूबा


एक अजूबा लोकतन्त्र का

बन गया मदारी राजा। 

जनसेवा का करे दिखावा,

नित ढोँग रचाए ताजा।


जनता पर जुमले बरसाकर,

मारी गर्म मर्म पर चोट।

हरेक को पन्द्रह लाख टका,

योँ ठग लिये उसके वोट।

पाकर सत्ता अकड दिखाए 

जैसे हिटलर का दादा।

एक अजूबा लोकतन्त्र का,

बन गया मदारी राजा। 


जनता को लावारिस छोड़ा,

वह घूमे देस परदेस। 

नारी उसका श्रँगार करें,

उसके पल-पल बदलें भेष।

भारत किया बरबाद उसने,

खा रहा विदेशी खाजा।

एक अजूबा लोकतन्त्र का,

बन गया मदारी राजा। 


कभी राज मुकुट धारण करता,

कभी बना फिरता फकीर।

कैमरा दल सदा साथ चले,

बने नाटक की तसवीर। 

कभी घडियाली आँसू बहते, 

कभी बजाता बाजा। 

एक अजूबा लोकतन्त्र का,

बन गया मदारी राजा। 


देश का उसने सब थन लूटा, 

मजबूर किए कँगाल।

बैँको का धन हडप-हडप कर, 

अपने दोस्त मालामाल। 

लूटे धन से पाता सत्ता,

सत्ता से वैभव आजा।

एक अजूबा लोकतन्त्र का,

बन गया मदारी राजा। 


बलात्कारी उसके चहेते, 

वह चुप रहता हत्या पर।

अनुशासन वह नहीं जानता, 

शिक्षा से वह जाता डर। 

यह कहानी नहीं पुरानी, 

भारत की घटना ताजा।

एक अजूबा लोकतन्त्र का,

बन गया मदारी राजा। 


राम अजर

जनवरी 24, 2022

  एक अजूबा एक अजूबा लोकतन्त्र का, एक अजूबा एक अजूबा लोकतन्त्र का बन गया मदारी राजा।  जनसेवा का करे दिखावा, नित ढोँग रचाए ताजा। जनता पर जुमले...